Home Lifestyle Alluri Sitarama Raju Was An Indian Revolutionary From Andhra

स्वतंत्रता की खातिर संन्यासी से क्रांतिकारी बने थे आन्ध्र के अल्लूरी राजू

Updated Wed, 08 Jun 2016 04:38 PM IST
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विस्तार

लोगों को सिर्फ़ महल की खूबसूरती, उसके शानदार छज्जे और सिर्फ़ डिज़ाइन दिखाई देता है, लेकिन जिन नींव के पत्थरों पर वो मकान टिका हुआ हैं वो किसी को नहीं दिखाई देते। सब शानदार छज्जे और बाहरी दिखावा बनना चाहते हैं, कोई बिरला ही होता है जो नींव का पत्थर बनता है। हिन्दुस्तान के क्रान्तिकारी उलट थे, वो सब नींव के पत्थर ही बनना चाहते थे। जानिए कुछ ऐसे ही क्रान्तिकारियों के बारे में जो गुमनामी में खो गए…।

संन्यासी भी और क्रांतिकारी भी1297798562Alluri_Seeta_Rama_Raju__large

अल्लूरी सीताराम राजू भी भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक थे। अपने एक संबंधी के संपर्क से वे आध्यात्म की ओर आकृष्ट हुए तथा 18 वर्ष की उम्र में ही साधु बन गए। सन् 1920 में अल्लूरी सीताराम पर महात्मा गांधी के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होंने आदिवासियों को मद्यपान छोड़ने तथा अपने विवाद पंचायतों में हल करने की सलाह दी। किंतु जब एक वर्ष में स्वराज्य प्राप्ति का गांधीजी का स्वप्न साकार नहीं हुआ तो सीताराम राजू ने अपने अनुयायी आदिवासियों की सहायता से अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करके स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयत्न आंरभ कर दिए। maxresdefaultवनवासी स्वतंत्र प्रिय होते हैं, उन्हें किसी बंधन में अथवा पराधीनता में नहीं जक़डा जा सकता है इसीलिए उन्होंने सबसे पहले जंगलों से ही विदेशी आक्रांताओं एवं दमनकारियों के विरुद्ध अभियान चलाया और उनका यह संघर्ष देश के स्वतंत्र होने तक निरंतर चलता रहा।

अल्लूरी सीताराम का परिचयAllurisitaramaraju-painting-desibantu-featured-1024x615

अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 ई. को पांडुरंगी गांव, विशाखापट्टनम, आन्ध्र प्रदेश में हुआ था। वह क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उनकी माता का नाम सूर्यनारायणाम्मा और पिता का नाम वेक्टराम राजू था। सीताराम राजू के पिता की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी, जिस कारण वे उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। बाद में वे अपने परिवार के साथ टुनी रहने आ गये। यहीं से वे दो बार तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान कर चुके थे।

क्रांतिकारियों से मुलाकातAlluri-Seetharamaraju-Stills_iqlik123iqlikC70C12-3063A2

पहली तीर्थयात्रा के समय वे हिमालय की ओर गये। वहां उनकी मुलाक़ात महान क्रांतिकारी पृथ्वीसिंह आज़ाद से हुई। इसी मुलाक़ात के दौरान इनको चटगांव के एक क्रांतिकारी संगठन का पता चला, जो गुप्त रूप से कार्य करता था। सन् 1919-1920 के दौरान साधु-संन्यासियों के बड़े-बड़े समूह लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए व संघर्ष के लिए पूरे देश में भ्रमण कर रहे थे। Alluri-Sitarama-Rajuइसी अवसर का लाभ उठाते हुए सीताराम राजू ने भी मुम्बई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, असम, बंगाल और नेपाल तक की यात्रा की। इसी दौरान उन्होंने घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, योग, ज्योतिष व प्राचीन शास्त्रों का अभ्यास व अध्ययन भी किया। वे काली माँ के उपासक थे।

क्रांतिकारी और सन्यासी जीवन5233218365_fc3fe608ce_o-1

अपनी तीर्थयात्रा से वापस आने के बाद सीताराम राजू कृष्णदेवीपेट में आश्रम बनाकर ध्यान व साधना आदि में लग गए। उन्होंने सन्न्यासी जीवन जीने का निश्चय कर लिया था। दूसरी बार उनकी तीर्थयात्रा का प्रयाण नासिक की ओर था, जो उन्होंने पैदल ही पूरी की थी। यह वह समय था, जब पूरे भारत में 'असहयोग आन्दोलन' चल रहा था। आन्ध्र प्रदेश में भी यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया था। इसी आन्दोलन को गति देने के लिए सीताराम राजू ने पंचायतों की स्थापना की और स्थानीय विवादों को आपस में सुलझाने की शुरुआत की। सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज़ी शासन के डर को निकाल फेंका और उन्हें 'असहयोग आन्दोलन' में भाग लेने को प्रेरित किया।

शुरू हुई क्रांतिकारी गतिविधियां31-1427779722-cbzq6vmuuaexycm

कुछ समय बाद सीताराम राजू ने गांधीजी के विचारों को त्याग दिया और सैन्य संगठन की स्थापना की। उन्होंने सम्पूर्ण रम्पा क्षेत्र को क्रांतिकारी आन्दोलन का केंद्र बना लिया। आन्दोलन के लिए प्राण तक न्यौछावर करने वाले लोग उनके साथ थे। आन्दोलन को और तेज़ करने के लिए उन्हें आधुनिक शस्त्र की आवश्यकता थी। ब्रिटिश सैनिकों के सामने धनुष-बाण लेकर अधिक देर तक टिके रहना आसान नहीं था। इस बात को सीताराम राजू भली-भांति समझते थे। यही कारण था कि उन्होंने डाका डालना शुरू किया। इससे मिलने वाले धन से शस्त्रों को ख़रीद कर उन्होंने पुलिस स्टेशनों पर हमला करना शुरू किया। 22 अगस्त, 1922 को उन्होंने पहला हमला चिंतापल्ली में किया। अपने 300 सैनिकों के साथ शस्त्रों को लूटा। उसके बाद कृष्णदेवीपेट के पुलिस स्टेशन पर हमला किया.

ब्रिटिश सरकार को छकायाAlluri-Sitaramaraju-(1974)-Movie-Audio-EP-LP-Gramphone-Record-Covers_aptalkies5E3970-FC80CD

अल्लूरी सीताराम राजू की बढ़ती गतिविधियों से अंग्रेज़ सरकार सतर्क हो गयी। ब्रिटिश सरकार जान चुकी थी कि अल्लूरी राजू कोई सामान्य डाकू नहीं है। वे संगठित सैन्य शक्ति के बल पर अंग्रेज़ों को अपने प्रदेश से बाहर निकाल फेंकना चाहते हैं। सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए सरकार ने स्कार्ट और आर्थर नाम के दो अधिकारियों को इस काम पर लगा दिया। सीताराम राजू ने ओजेरी गांव के पास अपने 80 अनुयायियों के साथ मिलकर दोनों अंग्रेज़ अधिकारियों को मार गिराया। इसके बाद सरकार ने सीताराम राजू को पकड़वाने वाले के लिए दस हज़ार रुपये इनाम की घोषणा करवा दी।

पुलिस से हुई कई बार मुठभेड़1

ब्रिटिश सरकार पर सीताराम राजू के हमले लगातार जारी थे। उन्होंने छोड़ावरन, रामावरन आदि ठिकानों पर हमले किए। उनके जासूसों का गिरोह सक्षम था, जिससे सरकारी योजना का पता पहले ही लग जाता था। उनके कदमों को रोकने के लिए सरकार ने 'असम रायफल्स' नाम से एक सेना का गठन किया। जनवरी से लेकर अप्रैल तक यह सेना बीहड़ों और जंगलों में सीताराम राजू को खोजती रही। मई 1924 में अंग्रेज़ सरकार उन तक पहुंच गई। 'किरब्बू' नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ।

और यह वीर सिपाही हो गया शहीद03vzgss03-Shilp_04_2461903f

अल्लूरी राजू विद्रोही संगठन के नेता थे और 'असम रायफल्स' का नेतृत्त्व उपेन्द्र पटनायक कर रहे थे। दोनों ओर की सेना के अनेक सैनिक मारे जा चुके थे। अगले दिन 7 मई को पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार सीताराम राजू को पकड़ लिया गया। उस समय सीताराम राजू के सैनिकों की संख्या कम थी फिर भी 'गोरती' नामक एक सैन्य अधिकारी ने सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियां बरसाईं। अल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान के बाद भी अंग्रेज़ सरकार को विद्रोही अभियानों से मुक्ति नहीं मिली। इस प्रकार लगभग दो वर्षों तक ब्रिटिश सत्ता की नींद हराम करने वाला यह वीर सिपाही शहीद हो गया। 14-168गांधीजी ने राजू के लिए ठीक ही कहा था कि ‘उस वीरात्मा का त्यागबलिदान, मुसीबतों-भरा जीवन, सच्चाई, सेवाभावना, लगन, निष्ठा और अदम्य हिम्मत हमारे लिए प्रेरणाप्रद है’। सुभाषचंद्र बोस ने कहा था ‘देशवासी उस अप्रतिम योद्धा के सम्मान में विनत हों। उसकी समर्पण-भावना देशानुराग, असीम धीरज और पराक्रम गौरव गरिमा मंडित है’।

                         ......इस वीर क्रांतिकारी की शहादत को सलाम

Source:?Bharat Discovery
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